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ये भी उसकी एक अदा सी लगती हैं,
पास रहकर भी जुदा सी लगती हैं |
आँख उठती नहीं हे महफ़िल मैं हमारी अब
अब दिले जज्बात कह ही देंगे हम
क्या हे दिल में उनके फ़साने क्या
कही न कही कुछ चाहत सी लगाती हे
पास रहकर भी जुदा सी लगती हैं |
हम अपने ही प्यार को वेवफा क्या कहे
दर्द के रिश्ते का फलसफा क्या कहे
यादों में उनकी साथ भी तो देता हे
वो संगदिल कहे इसे या बेवफा कहें
वो जो चाहे कहे हमें तो इश्क हे क्या कहें
ये भी उसकी एक अदा सी लगती हैं,
पास रहकर भी जुदा सी लगती हैं |
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