एक अरसे बाद ! ! ! ! ! ! ! . . . . .
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एक अरसे बाद उसी मोड़ पर मिली वो मुझे,
जहाँ से हसीन शुरुआत थी और तभी से
हर लम्हा हर पल वो मेरे साथ थी |
कहने लगी कितने अजीव हो तुम,
आज भी उतने ही आधे अधूरे हो तुम |
कहने लगी यु ही अफसाना कोई,
कोई कहानी आसानी से पूरी नहीं होती,
ये रस्मे रिवाज मजबूरियां और दूरियां ही तो हे,
नही तो ख्वाइसे और मैं भी यूँ अधूरी न होती |
मेने कहा दीवानों सा हाल,
मेरा तुम से ही तो आया हे,
तुम में ही तो मेने खुद को पाया हे
अभी तक तो खुश था बेमतलब सी जिंदगी में,
तुम्ही ने तो जिंदगी में रंग भरना सिखाया हें |
काश तुम समझती और जानती तो
मेरे लिये एकादशी का चाँद भी पूरा होता,
तुम एक बार हाँ कहती तो जान जाती,
कि ये अधूरा भी कितना पूरा होता |
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