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आज फिर एक तन्हा शाम में,
में एतवार खो बैठा हूँ,
दम भर पी आज मेने,
हो न हो होश खो बैठा हूँ
सोचा तो था जी लूँगा बिन तेरे,
पर मंजिल अकेले तय न हुयी सो !
कुछ यादें पुरानी खोल बैठा हूँ,
तुम्ही ने तो कहा था न कि,
यूँ तबियत से ऑंखें बंद करोगे
तो मुझे अपने पास ही पाओगे,
मैं तो तेरे इंतज़ार मै हर !
हर ! सुबह को शाम कियें बैठा हूँ |
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