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Monday 4 September 2017

एक तन्हा शाम ! ! ! ! ! !


एक तन्हा शाम ! ! ! ! ! ! ...........



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आज फिर एक तन्हा शाम में,

में एतवार खो बैठा हूँ,

दम भर पी आज मेने,

हो न हो होश खो बैठा हूँ

सोचा तो था जी लूँगा बिन तेरे,

पर मंजिल अकेले तय न हुयी सो !

कुछ यादें पुरानी खोल बैठा हूँ,

तुम्ही ने तो कहा था न कि,

यूँ तबियत से ऑंखें बंद करोगे

तो मुझे अपने पास ही पाओगे,

मैं तो तेरे इंतज़ार मै हर !


हर ! सुबह को शाम कियें बैठा हूँ |

***!!!***


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